ज़िद्दी बचपन जब मन मांगी मुराद पूरी ना होती थी कोई कितना भी पुचकारे मुंह से एक शब्द ना निकलती थी नाराजगी जाहिर करने के लिए चीजों का जोर जोर से पटक ना रोना और चिल्लाना वो जमीन पर लोटना मां के आंचल को कस के पकड़ना पिता के पैरों से लिपट जाना बड़ा ही ज़िद्दी था बचपना