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मैं न बनवा के कहीं, ताजमहल जाऊँगा बस यहाँ छोड़ के

मैं न बनवा के कहीं, ताजमहल जाऊँगा
 बस यहाँ छोड़ के कुछ गीत-ग़ज़ल जाऊँगा

 वक़्त के साथ किसी रंग में ढल जाऊँगा रफ़्ता-रफ़्ता मैं तेरे दिल से निकल जाऊँगा

 ज़ीस्त में बर्फ़ के टुकड़े सा पड़ा हूँ मैं तो 
उम्र की धूप चढ़ेगी, तो पिघल जाऊँगा

©G. K. Sharma
  # रफ्ता रफ्ता
gajendrasharma3292

G. K. Sharma

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# रफ्ता रफ्ता #शायरी

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