ग़ज़ल_غزل: २०७ -------------------------- 🌺🌻🌼🌷🌼💮🌸 🥀मिर्ज़ा ग़ालिब के अंदाज़ में कहे कुछ शेर🥀 221-2121-1221-212 दुन्या की कोई ज़ुह्रा जबीं में वो ढब नहीं तेरी तरह तो हूर भी ऐ ग़ुंचा-लब नहीं //१ ज़ाहिद तो मैं नहीं कि तेरी आरज़ू न हो तू सामने हो और मैं बोसा तलब नहीं? //२ बस देखने ही दे मुझे अपने शबाब को माना कि खेलने की मेरी उम्र अब नहीं //३ जब साक़िया हो तुझसा, सुबू जब तेरी नज़र हो जाए ख़त्म ऐसी तो शामे तरब नहीं //४ लिखते हैं अपने ख़ून से हम फ़त्ह की ग़ज़ल है जंग का महाज़ ये, बज़्मे अदब नहीं //५ क्या 'राज़' मेरे शौक़ ए बुताँ का बयाँ करूँ है कौन ऐसा काम कि जिसका सबब नहीं //६ #राज़_नवादवी© #hearts