उल्फ़त के गलियारों में, घूम रहे थे तारों में, आसमान छू लेने को, भटके खूब पहाड़ों में, रेज़ा-रेज़ा बिखर गये, नाम है अब बंजारों में, छपते रहते हैं किस्से, आए दिन अख़बारों में, प्रेम गीत के पन्नों पर, लिक्खे नाम सितारों में, रात-रात भर बातें की, गुपचुप सिर्फ़ इशारों में, गुंजन के मन की पीड़ा, शायद एक हज़ारों में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #आसमान छू लेने को#