वो, संतोष का, जल मिलाकर, आटा गूँथती है, रसोई में, फिर.., समर्पण की, लोईयां काटकर, बेलती है रोटियां, जैसे, धरती के गर्भ में, भूकंप बेलते हैं, उदर उसका, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #चार_कोस_दहलीज़ वो, संतोष का, जल मिलाकर आटा गूँथती है,