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सारांश@ बिठाया गया था जिन्हें सिर के उपर, किनारे

सारांश@

बिठाया गया था 
जिन्हें सिर के उपर,
किनारे नहि  थे 
दुजे को छु कर.π

खंडित न था मै
अपने सभि थे ,
वो बोले किया क्या ?
!मुझे मेरे मुह पर. 

दिया  बन गया था 
लो नीचे अंधेरा !
करताk  रहा मै
सभी का सावेरा .

दिखे ना दिखाया 
मुझे एक मंजर ,
दिखाया था €मैने 
मुझे ही बताया !

निकलता हू घर से 
मेरे पैर छु कर !
अबतक् संभाला 
खुदा का है शुकर !!

ना निचला , ना उचा 
सभी है सतह पर ,
मैन  भी उन्ही मे 
नही  प्राण दुभर !√

- सत्त्यसाधक

©@π!k€√
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