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कई बार लिखने को सोचता हूँ, मगर कहाँ सोच कर लिख पात

कई बार लिखने को सोचता हूँ,
मगर कहाँ सोच कर लिख पाता हूँ,
लिखना तो तभी होता है,
जब सोचना छूट जाता है,
और थक कर दिमाग़ दिल के सुपुर्द-ऐ-अहसास कर देता है,
तो जो लिखता है,
उसे लिखना कहाँ आता है।

जिसे दर्द और दवा का अहसास,
मुक़म्मल नजर आता ही नही,
दिमाग ठहर कर,
मासूम आँखों से,
यू हीं बह जाता है,
तब चंद लफ़्ज अपना मकाम पहुंच पाते है,
और कहने को कुछ लिखा जाता है,
फिर भी दिल तो जनता ही है,
कि सोच कर कहाँ लिख पाता हूँ,
फिर भी बेअक्ल सा,
कई बार लिखने को सोचता हूँ.......

©Prashant Roy
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#spontaneouswriting#स्वतः#स्फूर्त#सहज#सरलप्रवाह Rakesh Srivastava IshQपरस्त