Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best स्वतः Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best स्वतः Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about स्वतः विनियोग क्या है, स्वतः का अर्थ, स्वतः ही, स्वतःचे काम स्वतः करणारा, स्वतः हा,

  • 15 Followers
  • 17 Stories
    PopularLatestVideo

Simran

mute video

Simran

mute video

Kunal Salve

Drop #PC: #स्वतः 
#पबजी 
#pubg 
#marathi

Prashant Roy

#pen #सोच कर कहाँ लिख पाता हूँ! #spontaneouswriting#स्वतः#स्फूर्त#सहज#सरलप्रवाह Rakesh Srivastava IshQपरस्त #कविता

read more
mute video

Jayesh Sawant

स्वतःला एकटं करण्यामागे
 आपल्या स्वतःचा हातभार जास्त असतो #स्वतः 

#एकटेपणा

Mahesh Patil

Support in 5 words  Camera
फक्त #Photo #बनवतो

#Image

माणसाला #स्वतः #तयार #करावी_लागते ..!!!!!

©Mahesh Patil #Support5Words

vikas sunita sanjay

#Kissbeats #स्वतः स्वप्न साकार...!! # कविता.. #Poetry #poem

read more
mute video

Chitransh Rai

read more
" प्रेम कब हो जाता है पता ही नहीं चलता "
ये बात सभी को सुंदर और सहज लगती है,
मगर " प्रेम कब समाप्त हो गया पता ही नहीं चला " ये कथन असंगत और असुंदर प्रतीत होता है !
यानि प्रेम का कभी भी हो जाना हम सबको स्वीकार है, और समाप्त हो जाना विरोधाभासी ?
यदि प्रेम का स्वतः हो जाना उसकी सहजता है तो प्रेम का स्वतः समाप्त हो जाना भी सहज ही है, प्रेम का होना और समाप्त होना प्राकृतिक है, इसे हम अपनी सन्तुष्टता से निर्धारित नहीं कर सकते
सच तो यह है कि हम सभी अनुबंधों में इतना जकड़े हुए हैं कि हर चीज़ में निश्चितता चाहते हैं, यह तो प्रकृति नहीं है ! प्रेम दीर्घायु हो सकता है निश्चित नहीं..!


- राय साहब बनारस वाले (प्रेम अंतराल विशेषज्ञ)

Karuna Tare

स्पर्धा करायची असेल ना ते स्वतः शी करा ...कारणं स्वतः इतका उत्तम स्पर्धक ह्या जगात नसतो..

:-सौ. करुणा तरे #स्पर्धा

रजनीश "स्वच्छंद"

ज्ञान कुंड।। सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा, स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा। आरोह और अवरोह में, सार्थक ध्वनि कहीं मन्द थी। कपट-क्लेश विकृत समर में, #Poetry #kavita

read more
ज्ञान कुंड।।

सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा,
स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा।

आरोह और अवरोह में,
सार्थक ध्वनि कहीं मन्द थी।
कपट-क्लेश विकृत समर में,
रोध-इंद्रियां बड़ी चंद थीं।
स्फटिक धाग पिरो पिरो,
मंत्रोच्चरित बल भी मूक था।
अवधारणा प्रतिकूल थी,
पथद्रष्टा ठिठक दो टूक था।
अर्जुन सहज सखा कृष्ण भी,
अश्व-टाप सार धूमिल रहा।
अपभ्रंश शब्द कर्ण-पट पड़े,
आशय अनर्थ कुटिल रहा।
अर्थ भी बहुरुपिया हो स्वांगमय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।

अवलोकन आलोक बिन,
सामर्थ्य शब्द उधेड़ता।
कर्म-शिल्पी कृतान्ध बन,
कुविचार लब्ध उकेरता।
जो दिग्भ्रमित वाहित हुआ,
पथ ज्ञान कब वो वाचता।
व्याधी-युक्त उपचार ले,
किस मुख मनुज को जांचता।
किस विधा परिवेश क्या,
किस शोध जीव विहित हुआ।
निःपुष्प तरु तोयहीन जलधर,
अन्तर्मन सजीव निहित हुआ।
बंशी-धुन की छांव में विलाप लय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।

विषपान कर ले कंठ नील,
नव-युग अन्वेषित हो रहा।
कण कण धरा पुनीत धाम,
दण्ड-दोष उल्लेखित हो रहा।
देखो दमकती चल पड़ी,
झुर्रियों में खिल रहा तारुण्य है।
पत्तियों की झुरमुटों से,
धरा से मिल रहा आरुण्य है।
तम भेदती ये अरुणिमा,
स्वागत गान में सृष्टि लगी।
मानव हृदय के कपाट खोल,
ये नव-सृजित दृष्टि जगी।
दृष्टिपात से अंकुरित शीतल मलय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।।

©रजनीश "स्वछंद" ज्ञान कुंड।।

सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा,
स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा।

आरोह और अवरोह में,
सार्थक ध्वनि कहीं मन्द थी।
कपट-क्लेश विकृत समर में,
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile