दीमक चट कर गई मेहनत को मेरी जिसमें संग्रह थी की गयीं वो डायरी थीं मेरी मिट्टी का पुलिंदा बना सब खा गई डायरी मेरी एक भी पन्ना न बचा ऐसी किस्मत मेरी कभी सोचा न था मैंने ऐसा होगा कभी सुरक्षित रखी थी मैनें शीशे में बंद डायरी विचार बना जब लिखने को निकालने को हुआ डायरी ऐसा झटका लगा जिया को शुध – बुध खो गई मेरी याद आते हैं पल वो जब रची थी कविता मेरी सोचा था नेट पे डालने को पर बहुत हो गई देरी कैसी – कैसी कविता मैनें रची थी जीवन में मेरी धोखा खाया ऐसा मैनें की दीमक खा गयीं डायरी मेरी ................. #दीमक