आज भी हम आजाद कहाँ? आजादी के नाम है बस यहाँ, ना कोई है सुनने वाला, ना कोई है बचने वाला, सबको ये तड़पा कर मारेंगे, मालिक है, खाल नोंच कर ही मानेंगे, क्या तुम यही सोंच कर बैठे हो? नादानी की चादर ओढ़कर बैठे हो, कभी तो ये दयालु होंगे, कभी तो ये कृपालु होंगे, तो अच्छा ही है, जो इस गफलत में बैठे हो, अरे अंधों नींद से जागो, ये मालिक है, खाल नोंच कर ही मानेंगे तो फिर कहाँ कि आजादी? यहाँ कहिं नहीं है आजादी| महंगी आजादी