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अपने ही गाँव की गलियाँ हम सब देखी भाली भूल गए। पैस

अपने ही गाँव की गलियाँ हम सब देखी भाली भूल गए।
पैसों के दलदल में फँसकर होली दीवाली भूल गए।।

आँखें शहरों की चकाचौंध गाड़ी बंगलों में उलझी हैं।
कागज की कश्ती बारिश में और वो हरियाली भूल गए ।।

वो गर्मी के फुर्सत के दिन वो नीम की छांव तले बैठक।
वो छत वाला लम्बा बिस्तर वो शाम खाली भूल गए।।

बच्चे कम्प्यूटर सेल फोनों को अपना दिल दे बैठे हैं।
वो लुकाछिपी गुल्ली-डंडा वो लब्भा-पाली भूल गए।।

©Raj Guru
  #भूल_गए