महफ़िल-ए-दौर की हरारत नहीं कामिल गीतेय बस उठ कर चल देना ही मुनासिब मुझे अब लोग रुढ़ी समझे तो यही सही... सिगरेट है,राख है, धुआं है शामिल जब कोई नही तो यही सही... ©गीतेय... #retro