#ग़ज़लغزل: १५८ ---------------- आपका हर बात पे क्या मुस्कुराना ठीक है? आपको लगता है क्या इतना ज़माना ठीक है? //१ आपने ही प्यार की शर्तें रखी थीं, उज्र क्यों? आप ही कहते थे चोरी से कमाना ठीक है //२ आ गया जब हाथ ज़ानू पे तो तुम घबरा गए पाँव तुमको जबकि लगता था दबाना ठीक है //३ खेलना तुम कर चुके, बारी है मेरे खेल की तुम तो बस बैठे रहो, मेरा निशाना ठीक है //४ गर पड़े पैसे की ख़ातिर ख़ूँ बहाना शह्र में फिर पसीना गाँव में रहकर बहाना ठीक है //५ आप गाएँ जो लगे अच्छा ख़ुदा के वास्ते मेरे लब पे देशभक्ती का तराना ठीक है //६ ज़ोर से क्यों पढ़ रहे हो, गर नहीं कलमा है याद बात ऐसी है तो ख़ाली बुदबुदाना ठीक है //७ होगी दिल्ली ख़ुशनुमा, पर हैं मज़े भोपाल में इस जगह का कुल मिलाकर आबोदाना ठीक है //८ 'राज़' को मंज़ूर है सब, प्यार से जो भी मिले बोसा भी दे दो अगर तो मेहनताना ठीक है //९ #राज़_नवादवी© راز نوادوی 🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸