सुनो, मेरी उदासी महज़ ज़ख्म नही यारा ,अब नासूर बन चुका है। तेरे बिन जीना तो दूर ,तेरे बिना रहना सोच कर ही ये दिल मरहूम बन चुका है।। फफ़कूँ ,रोऊँ या गिड़गिड़ाऊँ, कुछ समझ नही आता, कैसे तुझे समझाऊँ कि तू मेरा जहाँ ही नही बल्कि सारे आने वाले लम्हों का सुकून बन चुका है।।। ©HAQIM◆E◆ISHQ【sfr◆ak◆aaghhaaj】 ज़िद्दी ठहरे ये ज़ख़्म गहरे