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वो कहते हैं! कवितायें शब्दों में नहीं, उनके अन्त

वो कहते हैं! 
कवितायें शब्दों में नहीं, 
उनके अन्तराल में मिलती है।

मैं कहती हूँ!
कवितायें शब्दों के अन्तराल में नहीं,
अनकहे, अनसुलझे हालों में मिलती है।

बेबस, पर मुस्कराते गालों में मिलती है।

अनगिनत, सवालों और बेतुके मलालों में मिलती है।

कभी ऊँचे पहाड़ों में,  
कभी शहर के अंधेरे गलियारों में मिलती हैं। 

कभी हंसते, कभी रोते
इंसानों में मिलती है।

कभी बेहिसाब बातों
तो कभी बेहिसाब ख़यालों में मिलती है।

कविताएँ ढूंढी नहीं जाती,
कवितायें गढ़ी जाती हैं। 
आहिस्ते - आहिस्ते, 
एक शब्द
और उस शब्द के अनगिनत भेदों में।

©"Midnighter"
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