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कोई क्यों साथ देगा मुश्किलों में, दुबक कर बैठते सब

कोई क्यों साथ देगा मुश्किलों में,
दुबक कर बैठते सब आँधियों में,

चमकती धूप बर्फीली सतह पर, 
नज़र भर देखलो इन वादियों में,

इबारत छप गई सूरत पे अपनी,
तुम्हारी फ़िक्र है  इन रतजगों में,

मुहब्बत की है इत्ती सी हिदायत,
तग़ाफुल बदल जाता फासलों में,

मुकद्दर साथ तो आसान मंज़िल, 
मिलेगी  क़ामयाबी  मक़सदों  में,

दर्द-ए-दिल का इलाज पाने को,
उदासी बसर करती महफ़िलों में,

नज़ूमी वैद्य जहाँ  बेअसर 'गुंजन',
असर देखा है रब की दुआओं में,
  --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
    कलकत्ता प○बंगाल

©Shashi Bhushan Mishra #तुम्हारी फ़िक्र है#
कोई क्यों साथ देगा मुश्किलों में,
दुबक कर बैठते सब आँधियों में,

चमकती धूप बर्फीली सतह पर, 
नज़र भर देखलो इन वादियों में,

इबारत छप गई सूरत पे अपनी,
तुम्हारी फ़िक्र है  इन रतजगों में,

मुहब्बत की है इत्ती सी हिदायत,
तग़ाफुल बदल जाता फासलों में,

मुकद्दर साथ तो आसान मंज़िल, 
मिलेगी  क़ामयाबी  मक़सदों  में,

दर्द-ए-दिल का इलाज पाने को,
उदासी बसर करती महफ़िलों में,

नज़ूमी वैद्य जहाँ  बेअसर 'गुंजन',
असर देखा है रब की दुआओं में,
  --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
    कलकत्ता प○बंगाल

©Shashi Bhushan Mishra #तुम्हारी फ़िक्र है#