" आज फिर एक बात मेरे जेहन में हैं , मुहब्बत को मुहब्बत की ख़बर हैं ये वहम में हैं , उलझा हैं एहसास इस कदर की सुलझाएं कैसे , वो ख़बर रख के भी मेरी आज मेरी ख़बर नहीं रखती . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " आज फिर एक बात मेरे जेहन में हैं , मुहब्बत को मुहब्बत की ख़बर हैं ये वहम में हैं , उलझा हैं एहसास इस कदर की सुलझाएं कैसे , वो ख़बर रख के भी मेरी आज मेरी ख़बर नहीं रखती . " --- रबिन्द्र राम #जेहन