तू ज़माने के दस्तूर में थी; अपने ईमान से अमान में थी, दोष तेरा कुछ नहीं बस इतना की तू औरत के लिबास में थी! हैवानियत की रिवायत है सिर्फ़ स्त्री की पहचान जानती है ना उम्र की कदर; ना इंसानी खून को परखती है ये इस दौर की वो भूख है जो केवल जिस्म तराशती है! कल निर्भया थी,कुछ रोज़ पहले - असिफा आज तू भी मिट गई वही औरत के हवाले से। कल भी खौफनाक ही मंज़र दिखता है डर के साए में रोज़ बच्चियों का दर्द पनपता है। वापस घर को सलामत बेदाग लौटेंगे ये खौफ़ में जीते हैं? तू चली गई सीने का गहरा एक और दूसरा ज़ख़्म बनके; दुआ में भी कुछ लफ़्ज़ नहीं उठते, कहकर देखना उस खुदा से गर उसे औरत के दर्द समझते हैं? #RIPPriyankaReddy again a shameful act