तुम महलो कि परी हो बस्तियों मे क्या पाओगी तुम्हारी तख्ते भी हमारे छतो से ऊच्ची होती है हम ही गुनहगार है जो चाहा जरा सोचो कैसे सहोगी गरीबी तप्ती आंच मे झुलस जाओगी Dharmendra Kumar Yadavendra हमारा प्यार