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तुम महलो कि परी हो बस्तियों मे क्या पाओगी तुम्हा

तुम महलो कि परी हो 
बस्तियों मे क्या पाओगी
 तुम्हारी तख्ते भी
हमारे छतो  से ऊच्ची 
होती है
हम ही गुनहगार है
जो चाहा 
 जरा सोचो  कैसे सहोगी गरीबी  
तप्ती 
आंच मे झुलस जाओगी
Dharmendra Kumar
Yadavendra हमारा प्यार
तुम महलो कि परी हो 
बस्तियों मे क्या पाओगी
 तुम्हारी तख्ते भी
हमारे छतो  से ऊच्ची 
होती है
हम ही गुनहगार है
जो चाहा 
 जरा सोचो  कैसे सहोगी गरीबी  
तप्ती 
आंच मे झुलस जाओगी
Dharmendra Kumar
Yadavendra हमारा प्यार

हमारा प्यार