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खो रहा है बचपन ....कुछ यूं जश्न मना के...... खुद ह

खो रहा है बचपन ....कुछ यूं जश्न मना के......
खुद ही रो पड़ते हैं... खुद ही खुद को हंसा के..

कि मैं इंसान मगर हूं जानवर
ये जानवर  है इंसान
कि
मिल पड़े हम दोनों एक दूजे को... आवारा बता के...


आवारा, बेघर ,छोटा -सा बच्चा ...
हो जाता हूं चुप... बड़ों के रोब से..

मगर रिश्ता अनूठा.. बेजती .. सह न पाए मेरा दोस्त..
भागते रहते हैं यूं ही... दूसरे कुत्तों पर भोंक के..!!

©Gudiya Gupta (kavyatri).....
  #साथी  rajeev Bhardwaj  Arun Shukla ( मृदुल) "अब्र" 2.0 शंकर पाल  अं_से_अंशुमान