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खुद को खुद के अन्दर ढुंढ रहा हुॅं अन्दर हि अन्दर ट

खुद को खुद के अन्दर ढुंढ रहा हुॅं
अन्दर हि अन्दर टुट रहा हुॅं
जज्बातो से मैं जुझ रहा हुॅं
अश्क को अन्दर सोख रहा हुॅं

अब शब्दो से मैं खेलता हुॅं
मौन हो कर मैं सब झेलता हुॅं

सिमट और सहम सा जाता हुॅं
जब मैं उस क्षण से रू-ब-रू होता हुॅं

जिंदा हु पर लाश बना!
अन्दर हि बहुत सवाल खड़ा!

उल्झने अब बढ सा है गया!
अब खुद को मै भुल सा गया! #thought#poetry#emotion
खुद को खुद के अन्दर ढुंढ रहा हुॅं
अन्दर हि अन्दर टुट रहा हुॅं
जज्बातो से मैं जुझ रहा हुॅं
अश्क को अन्दर सोख रहा हुॅं

अब शब्दो से मैं खेलता हुॅं
मौन हो कर मैं सब झेलता हुॅं

सिमट और सहम सा जाता हुॅं
जब मैं उस क्षण से रू-ब-रू होता हुॅं

जिंदा हु पर लाश बना!
अन्दर हि बहुत सवाल खड़ा!

उल्झने अब बढ सा है गया!
अब खुद को मै भुल सा गया! #thought#poetry#emotion