खुद को खुद के अन्दर ढुंढ रहा हुॅं अन्दर हि अन्दर टुट रहा हुॅं जज्बातो से मैं जुझ रहा हुॅं अश्क को अन्दर सोख रहा हुॅं अब शब्दो से मैं खेलता हुॅं मौन हो कर मैं सब झेलता हुॅं सिमट और सहम सा जाता हुॅं जब मैं उस क्षण से रू-ब-रू होता हुॅं जिंदा हु पर लाश बना! अन्दर हि बहुत सवाल खड़ा! उल्झने अब बढ सा है गया! अब खुद को मै भुल सा गया! #thought#poetry#emotion