चैत चढ़े उसकी देह के, समुंदर से निकली, वो आह की लहर, लबों के किनारों पर, जमकर खामोशियों का नमक, बन गयी, डूबती उम्मीदें उसकी, निरंतर प्रयासरत रहीं, तैरने को, हृदय के आवृत्ति की तरंग, शरद पूर्णिमा का चाँद बन, पुनः लातें रहे, उसके मन की, व्याकुलता के सागर मे, इक वृहद अतृप्ता का ज्वार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #चींखती_पाज़ेब चैत चढ़े उसकी देह के, समुंदर से निकली, वो आह की लहर,