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​चैत चढ़े ​उसकी ​देह के, ​समुंदर से निकली, वो ​आह क

​चैत चढ़े
​उसकी ​देह के,
​समुंदर से निकली,
वो ​आह की लहर,
​लबों के किनारों पर,
​जमकर ​खामोशियों का नमक,
​बन गयी,
​​डूबती उम्मीदें उसकी,
​निरंतर प्रयासरत रहीं,
​तैरने को,
​हृदय के आवृत्ति की तरंग,
​शरद पूर्णिमा का चाँद बन,
​पुनः लातें रहे,
​उसके मन की,
​व्याकुलता के सागर मे,
इक ​वृहद अतृप्ता का ज्वार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#चींखती_पाज़ेब

​चैत चढ़े
​उसकी ​देह के,
​समुंदर से निकली,
वो ​आह की लहर,
​चैत चढ़े
​उसकी ​देह के,
​समुंदर से निकली,
वो ​आह की लहर,
​लबों के किनारों पर,
​जमकर ​खामोशियों का नमक,
​बन गयी,
​​डूबती उम्मीदें उसकी,
​निरंतर प्रयासरत रहीं,
​तैरने को,
​हृदय के आवृत्ति की तरंग,
​शरद पूर्णिमा का चाँद बन,
​पुनः लातें रहे,
​उसके मन की,
​व्याकुलता के सागर मे,
इक ​वृहद अतृप्ता का ज्वार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#चींखती_पाज़ेब

​चैत चढ़े
​उसकी ​देह के,
​समुंदर से निकली,
वो ​आह की लहर,
akalfaaz9449

AK__Alfaaz..

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