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चाह तभी तक लौटने की तुम्हारी, आंखों से मेरी, नींद

चाह तभी तक 
लौटने की तुम्हारी,
आंखों से मेरी,
नींद उड़ाये रखती,
जब तक ख़ुशी मेरी मायने रखती,
अक्स तेरी हर आईने में दिखती।

मगर भ्रम कब तक टिकता है,
कितना भी हो मजबूत चट्टान,
बेतरतीब रफ्तार पानी की,
उसे समय समय पर,
टुकड़ो टुकड़ो में तोड़ता है,
अब इसलिए भी,
अपने दिल और दिमाग को,
दूर रख कर देखता हूँ,
तुम्हारे लौटने की,
अब उम्मीद नहीं करता हूँ।

©Prashant Roy
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Prashant Roy

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