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माज़ी को अपने भूल जाना है मुझे अपनों के ख़ातिर मुस

माज़ी को अपने भूल जाना है मुझे
अपनों के ख़ातिर मुस्कुराना है मुझे 

ख़त सामने उस के जला कर के सभी
फिर सोग भी उस का मनाना है मुझे 

उसका सुकून-ए-क़ल्ब उस से छीन कर
ख़ुद को भी उतना ही सताना है मुझे

कर दे मिरे मौला तू कोई मो'जिज़ा
ख़ुद ही से अब ख़ुद को बचाना है मुझे

©Poet Kabiir
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poetkabeer9964

Poet Kabiir

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