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स्कूल , टिफिन, और मैं ... लेख को अनुशीर्षक में पढ

स्कूल , टिफिन, और मैं ...

लेख को अनुशीर्षक में पढ़ें जब मैं लगभग प्राइमरी की पढ़ाई में स्कूल जाना शरू किया मुझें याद हैं अब भी की मेरे पापा मुझें अपनी लूना से लेकर स्कूल छोड़ने जाते थे और जब स्कूल का बड़ा सा वो सिल्वर सा हांथी दरवाजा आता था मन धक सा रह जाता था , उस दरवाजे से लगी लोहे की रैलिंग्स की बाउंड्री थी उसमें से वो मुझें देखा करतें थे कि।मैं अपनी क्लास में पहुँच ना जाऊं , रोने का मन भी करता था , पर स्कूल का पहला जुलाई वाला दिन आपको अपने साथ बहुत सारी चीजें लाकर देता हैं नया क्लासरूम नए दोस्त नई टीचर , और वो कॉपी किताब की खुश्बू , वो शायद क्लास 1 या 2 की बात कर रहा हूँ मैं जहाँ क्लास में घुसते ही अपनी बेंच की पड़ी होती थी और पानी की बोतल रखने के लिये सबके लिए एक छोटी सी अलमिराह होती थी जिसमें सबकी , रंग बिरंगी , मिक्की माउस, अंकल स्क्रुच , अल्लादीन ,सुपरमैन ,की बोतलें सजी रहती थी , स्कूल की छत अंगेजो के जमाने वाली मंदिर नुमा तिकोनी और खप्पड़ वाली होती थी जिसमें में धूप की वो लेज़र लाइट जैसी किरणें आती और उनमें हवा में उड़ते हजारों कण अनगिनत सतरंगी रोशनी देखने का भी अपना मजा था पढ़ाई के बाद फिर टिफ़िन में क्या हैं उसे खोलने और नए दोस्तों के साथ कही सी-सा के पास बैठकर फूलों के छोटे से गार्डन में बैठकर टिफिन खाना कोई , पोहे तो कोई आलू का पराठा अचार लाया , तो कोई घी लगी रोटी और सब्जी ,सबकुछ छोटी नज़रों से देखने की बात ही कुछ अलग थी , खाने में मस्ती , और बोतल का पानी पीना फिर भाग भाग कर एक दूसरे को पकड़म पकड़ाई खेलना और फिर टन टन की घटीं का बजना और रिसेस खत्म.....


#neerajwriteson #yqbaba #yqdada
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