आज फिर इंसानियत की हार हुई है शर्मिंदगी भी खुद से शर्मसार हुई है दरिंदगी की हद अब बाकी क्या है उंगलियों से इज़्ज़त तार तार हुई है आबरू चीख कर कह रही है उसकी रूह पे वहशी निगाहों से वार हुई है हैवानों के हौसले बढ़ रहे हैं इस कदर बेबसी के जख्म दिल के पार हुई है जाति मज़हब के सौदागरों के कारण अखंडता की तौहीन बार बार हुई है पन्ने पलट कर लोग ज़हन से फेंक देते हैं उसकी बेज़ार ज़िंदगी रद्दी अखबार हुई है #HathrasRapeCase #Rape #castepolitics #casteism #SukritiPandey #allalone