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sukritipandey4888
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Sukriti Pandey

बताना भी चाहूँ तो क्या बताऊँ , सादे पन्ने और खुली किताब तो है मेरी ज़िदंगी !!

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Sukriti Pandey

उनका ज़िंदगी में आने का क्या मोजज़ा हुआ
नामुकम्मल ख्वाइशों का हर पल इंतहा हुआ 

किसकी मज़ाल जो उनके होते हुए छेड़े मुझे 
मेरी गलियों में उनका क्या खूब मरतबा हुआ

शान-ओ-शौकत नही  मुझे मोहब्बत  चाहिए
कल रात उनकी बाहों में  आखिर क्या हुआ 

मेरे जहां से रुखसत होने की खबर क्या आई
फूल मौसम यहाँ तक दुश्मन भी मेहरबां हुआ 

फुरक़त का बादल छाया तो सब इतराने लगे
क़ुरबत के लम्हों में काँटा भी गुलिस्ताँ हुआ

बड़ी दूर से जो आए तुम सिर्फ मुझसे  मिलने 
मेरी  अंधेरी ज़िंदगी में  जश्न-ए-चऱागाँ हुआ

©Sukriti Pandey #SukritiPandey

#steps
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Sukriti Pandey

सुनो ! अब कहने को कुछ बचा हीं नहीं
बयां तो सब कर दिया पर किसी ने सुना ही नहीं 

गुफ्तुगू आँखों से होती है कागज़ तो ज़रिया है 
मगर  इन नज़रों को भी किसी ने पढ़ा  ही  नहीं 

कहते हैं फासलों से नज़दिकियां बढ़ती हैं
पर दूर रहना भी तो किसी ने कभी सहा ही नहीं

गलती कर दी दिल की बात का ज़िक्र करके
इल्म हुआ मगर दिल की इसमे कोई खता ही नहीं 

हाल-ए-दिल पूछते रहते हैं हमसे सभी यहाँ 
और दर्द-ए-दिल  कभी किसी ने जाना ही  नहीं 

हक़ीम बहुत मिले पर मर्ज़ का कोई इलाज़ न मिला
बीमार-ए-गम की दवा  किसी को पता ही  नहीं 

फितरत-ए-इंसान से वाक़िफ़ हूँ पर कुछ कुछ 
कितना भी चाहा पर दर्द भी किसी से छुपा ही नहीं 

तस्सली देना तो ज़माने की आदत सी बन गई है 
मगर किसी तरकीब से ज़ख्म अभी तक भरा ही नहीं #SukritiPandey

#LostTracks
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Sukriti Pandey

आज फिर इंसानियत की हार हुई है
शर्मिंदगी भी खुद से  शर्मसार  हुई है 

दरिंदगी  की हद अब  बाकी क्या है
उंगलियों से  इज़्ज़त तार तार हुई है

आबरू चीख कर कह रही है उसकी
रूह पे वहशी निगाहों से  वार हुई है

हैवानों के हौसले बढ़ रहे हैं इस कदर
बेबसी के जख्म  दिल के पार हुई है 

जाति मज़हब के सौदागरों के कारण
अखंडता की तौहीन बार बार हुई है

पन्ने पलट कर लोग ज़हन से फेंक देते हैं
उसकी बेज़ार ज़िंदगी रद्दी अखबार हुई है #HathrasRapeCase #Rape #castepolitics #casteism #SukritiPandey 

#allalone
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Sukriti Pandey

मेरे इज़्हार-ए-मोहब्बत को दोस्ती का पैगाम बता दिया 
पता गलत है कह कर खत को मेरे हीं पते पर लौटा दिया 

जवाब-ए-नामा में  तासीर-ए-वफ़ा हीं मेरे नाम लिख देते 
दिल भी मेरा टूटा और गुनहगार भी मुझे हीं ठहरा दिया 

उनकी यादों को ता-उम्र ज़हन से नहीं मिटा सकते मगर
उन्होंने बड़ी आसानी से बीते लम्हों की यादों को मिटा दिया 

काश उन्हें भुलाना मुम्किन होता तो भुला देते उनकी खातिर
ताज़्ज़ुब ! सब भुला दिया उन्होंने अदब-ए-वफ़ा भी भुला दिया 

मस'अला क्या हुआ मोहब्बत न सही रफाक़त भी न रही अब 
अहवाल-ए-बशर जाने बिना हीं मेरी मोहब्बत को ठुकरा दिया 

पता न था इतनी गम अज़ीयत दर्द देगी उनकी मुलाकात 
तर्क-ए-ताल्लुकात पर कुछ न बोल कर खामोशी जता  दिया #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

दूरियों का सिलसिला फिर एक दफ़ा बढ़ गया 
जिसके लिए बदलती रही खुद को वो शख्स बदल गया 

मेरी मंज़िल को फ़िर एक नया हमसफर मिल गया
नम  आँखों  में  मेरे  ग़म-ए-उल्फ़त-ए-जानाँ  ठहर  गया 

हर मरतबा  मैं  हीं गलत थी  लो ये भी मान लिया 
सांसे चल रही  हैं  दिल टूटा है अब ज़मीर भी थक गया 

मेरे हर नफ़्स से वाकिफ़ वो मुझे अपना मानता था
मेरा अजीज न जाने किसकी बातों में आके बहक गया 

कोशिश भी नही की मनाने की शायद मान जाता
हमराही था दो पल का फ़क़त कुछ लम्हों में बिछड़ गया  

हाल-ए-दिल का वकाया क्या करूँ अब लोगों से
कल तक जो मेरी दुनिया था किसी कि दुनिया बन गया

उससे बेहतर वाक़ई मुझे कोई समझता भी नहीं
चंद गलतफहमियों  की वजह से मुझे गलत समझ गया #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

पूरी रात बीत जाती है अब नींद को मनाने में
आराम नहीं मिलता यहाँ खुद के ठिकाने में 

उनकी क़ुरबत में दिल को सुकून मिलता था
क्या  फ़ायदा होगा  दिल को उन्हें भुलाने में

हमारे रास्ते बेशक अलग हो सकते हैं मगर
हमारा किस्सा महफूज़ है दिल के फ़साने में 

मेरा तमाम रात उनके खयालों में जागना  
कौन चाहेगा उन्हें अब मुझसा इस जमाने में

ना जाने कब तलक उनकी खूश्बू में कैद रहूँगी
तरस आता है फूलों को गुलिस्तां महकाने में

आँखों में अश्क़ देख कर प्यार आता था उन्हें
एक कसर नहीं छोड़ी मैंने खुद को रुलाने में #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

ऐसे भी नहीं  हालात  मेरे की बताया न जाए
इतने  फ़ासले भी नहीं  कि पास आया न जाए

उसे भूलना पड़  रहा है  ये मस'अला अलग है
क़ैद-ए-हयात  में अब एक पल बिताया न जाए

मुद्दतों से दीदार- ए- तबस्सुम के लिए ज़िंदा हूँ
दो जहां हार कर लौटी अब कुछ लुटाया न जाए

वीरां हैं हम यहां और वो बज़्म-ए-गैर में शरीक़ है 
बे- आबरू हुए लफ़्ज़ों  से कुछ  फ़रमाया न जाए

कैसा बे-दर्द ज़माना है  जिसे मक़्तल की पड़ी है
शहीद-ए-इश्क़ हम तअ'ल्लुक़ तोड़ते मरा न जाए

कैसी तक्कलुफ़ है  ज़हन में कैसा ग़म-ए-दौराँ है 
ख़्वाब-ए-मसर्रत में भी उसको गले लगाया न जाए

©Sukriti Pandey #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

#OpenPoetry फक़त एक हम हीं नहीं जिसने दिल लगाया है 
कई शख़्स हैं जिसने दिल्लगी में  दिल जलाया है 

मिल न सका जो ख्वाबों में ना हीं उजालों में  
उसकी यादों में ना जाने कितने चराग़ बुझाया है

रिवायतें भी अजीब सी हो गई इस दौर की
फासलें मिलते हैं जब किसीने खामोशी जताया है 

लोग बहोत हैं यहाँ कमबख़्त ज़िंदगी के मारे
बहोत कम हीं हैं जिसने ज़िंदगी को गले लगाया है 

तलबगार सब बैठे हैं यहाँ किसी न किसी के
वो भी हैं  जिसने तलब में सिर्फ इश्क़ फरमाया है

जो कहते हैं यूँ सर-ए-बाज़ार ना करो गम को
उन्हीं को महफ़िलों में अक्सर रुसवाई करते पाया है #OpenPoetry #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

#OpenPoetry अजीब है  ज़िंदगी का फलसफ़ा भी ना जीने की ख्वाइश रही ना मर सकते हैं 
रुख़सत हो गये इस कदर दुनिया से याद करने के सिवा और क्या कर सकते हैं 
ऐसी भी क्या मजबूरी थी जिम्मेदारियों को अधुरी छोड़ कर वादों से मुकर गये 
के फैसला बदल दे खुदा गर इक दफ़ा तो वक़्त के साथ बेवक़्त गुज़र सकते हैं #SukritiPandey
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Sukriti Pandey

क्या खूब ज़लिल किया मोहब्बत में उसने मुझे 
खुद को तन्हां कर दिया मुझे आबाद करने के लिए ..!! #SukritiPandey
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