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अनज़ाम-ए-किस्मत से खौफज़दा वो रहे, जो राहे-ए-मंजि

अनज़ाम-ए-किस्मत से खौफज़दा वो रहे, 
जो राहे-ए-मंजिल में कुछ ग़लत करे, 
किसी को बेआबरू करे, किसी को रुसवा करे। 
खुुदा को याद रख ऐ मुसाफिर, न जाने अपनी अदालत में कब किसको तलब करे।

©रहमत-ए-भारत
  रहमत-ए-भारत 
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