याद है मुझे वह बचपन के दिन जब मैं दो कदम चलते ही थक जाती थी पापा बिठाते मुझे कंधे पर थकान मेरी पल में उतर जाती थी एक कांटा चुभने पर जो घर को सर पर उठा लेती थी उसके लिए पापा की प्यार भरी फूक दवा का काम कर जाती थी याद है मुझे वह बचपन के दिन जब मैं चलते-चलते गिर जाती और रोने लगती थी पापा मुझे उठा कर बोलते हैं देख चिटीं मर गई और मैं चुप हो जाती थी हाथ उठाना कभी पापा ने जाना ही नहीं मुझ पर उनके 1 डांट 100 डंडों का काम कर जाती थी -रूह🥀 ©un khii sii daastaan papa k liy spacial #shayri143❤ #un_khii_sii_daastaan #foryoupapa