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जीवनसर्ग ये महासर्ग में जो उपसर्ग था कथावस्तु के ज

जीवनसर्ग
ये महासर्ग में जो उपसर्ग था
कथावस्तु के जीवनसर्ग में
उसे तुमनें ध्यान से पढ़ा नही ?
जीवन के बोध में तुम्हारी पहेली में 
अनबुझ कड़ी में अलसुलझा हूँ में
इसलिए तुम मेरे व्यथा ए कथा से अधूरे हो,
तुम्हारें समझ से परे था में
औऱ उलझते हुए कथानक के मध्य खड़ा था में
जो तपस औऱ तमस के मध्य की 
ज्योति पुंज जैसे जला हूँ मै
मुझे बस अब बोध कहाँ
दुनिया के अछूते व्यवहार से दूर रह कर
बस परमात्मा के साथ घुलनशील के लिए 
जल व शक़्कर की भांति 
तेज प्रवाह में अभी क्रियाशील हूं में ।।
ये आत्मोसर्ग के मिलन में 
ईशा को देखने को आतुर निसर्ग था।
सब के मध्य पीपल पात सा ओस हूँ में
जग व्यवहार का हिस्सा जो था में
सृष्टि का क्रम में दूर से दिखने वाला सूक्ष्म बिंदु हूँ में
सलिल व सूर्य के मध्य बना इंद्रधनुष
वह सतरंग सा उभरा हुआ हूँ ,
फिर अभी परमतत्व के खोज में गतिशील हूँ में
कही अभी तेज के अधीन प्रकाशशील किरण हूँ में।। जीवनसर्ग।।
जीवनसर्ग
ये महासर्ग में जो उपसर्ग था
कथावस्तु के जीवनसर्ग में
उसे तुमनें ध्यान से पढ़ा नही ?
जीवन के बोध में तुम्हारी पहेली में 
अनबुझ कड़ी में अलसुलझा हूँ में
इसलिए तुम मेरे व्यथा ए कथा से अधूरे हो,
तुम्हारें समझ से परे था में
औऱ उलझते हुए कथानक के मध्य खड़ा था में
जो तपस औऱ तमस के मध्य की 
ज्योति पुंज जैसे जला हूँ मै
मुझे बस अब बोध कहाँ
दुनिया के अछूते व्यवहार से दूर रह कर
बस परमात्मा के साथ घुलनशील के लिए 
जल व शक़्कर की भांति 
तेज प्रवाह में अभी क्रियाशील हूं में ।।
ये आत्मोसर्ग के मिलन में 
ईशा को देखने को आतुर निसर्ग था।
सब के मध्य पीपल पात सा ओस हूँ में
जग व्यवहार का हिस्सा जो था में
सृष्टि का क्रम में दूर से दिखने वाला सूक्ष्म बिंदु हूँ में
सलिल व सूर्य के मध्य बना इंद्रधनुष
वह सतरंग सा उभरा हुआ हूँ ,
फिर अभी परमतत्व के खोज में गतिशील हूँ में
कही अभी तेज के अधीन प्रकाशशील किरण हूँ में।। जीवनसर्ग।।
awnishbhatt7701

Awnish bhatt

New Creator

जीवनसर्ग।।