Nojoto: Largest Storytelling Platform
awnishbhatt7701
  • 12Stories
  • 263Followers
  • 75Love
    36Views

Awnish bhatt

  • Popular
  • Latest
  • Video
b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

।।शीर्षक-बिटिया रानी सुनो कहानी।।

घर की लाड़ प्यार में पली चिड़िया
नहीं जानती संसार का रंग कैसा
थोड़ा प्यार क्या का मिला 
चली आसमाँ से याराना करने 
क्या पता था कि जो है वह सत्य नही,
उस चमन का किनारा का पता नही,
बहुत सारे गिद्ध है आसमान की बुलंदियों में
जो छिटक गए घर से तो नोच कर खा लेंगे शिकारी,
यहां तेरा कोई नही ,
बस तेरे गोश्त खाने सब आतुर,
तू नही जानती कि ये सारा जहां कैसा है?
तू अभी अनजान इन राहों से
तुझे आसमाँ में नही आता उड़ना,
बस दानों देख तू व्याकुलित न हो जाना ।
अभी तुझे पहचान कहां?
तू अभी गर्म कपास में जिस का था घोंसला,
वह तिनकों का चुभन का घर क्या जानें,
अभी नन्हें पंख अनुभव से अनजान
इसलिए कहता हूं तेरे पंख कोमल
ये तेरी जाँ तेरे सुंदर पंखों को नोंच डालेंगे।।
बच कर रहे इन हवाओं से 
इन वबाओं से
तू घर की पली नन्ही छोटी चिड़िया है ।। #RaysOfHope
b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

चलो फिर से आप के सम्मुख एक कविता कहूँ या गीत लिखने जा रहा हूँ बस मेरी भावाव्यक्ति है।।

जयति जय मां भारती 
उत्तर हिम की तुङ्ग शिखरों से
चाहे दक्षिण का सागर का तट
चाहें पूरब का सूर्य उदयाचल
हो पश्चिम का छोर अस्तांचल
चारों दिशा में एक स्वर गुंजन होता
जयति जय माँ भारती।।

सागर की लहरों में 
तट की छोर चरण वंदन कर
चरणों को पखारे हर दम
कहता है ये रत्नाकर भी
जयति जय माँ भारती।।

मलयागिरि से नीलगिरी तक
पवनों ने एक शोर गूंजता 
सुंदर चन्दन से तन में
अंग राग से सज्जित करता
कहता है जयति जय माँ भारती।।

मध्य में विंध्याचल से सतपुड़ा में
इन पुरातन पहाड़ियों के खण्डर में
धरा दिव्य धाम के नर्मदा की गहराई में
स्वर संगीत की जननी में बांसों की झुरमुट में
एक राग गूंजता जयति जय माँ भारती।।

पूर्व की पूर्वया मदमदकता में
वसन्त के सुरों ताल में भोरों के 
निनादमय में जयति जय मां भारती ।।

तेरे हिम शिखरों के हिम मुकुट से 
जो नदियों का उद्गम होता है 
उनके निर्झरिणी में स्वरों आवाज़ में
आवाज़ है जो प्रकृति की हरदम
एक स्वर सुनता हूँ जयति जय माँ भारती।। #Bechain_man
b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

अलसाई कली जाग चुकी है 
मदमस्त भौरा तुम जागों 
अब स्वर्ण सुरा की आभा से 
बाहर आकर सुनहरे स्वप्न में 
 हकीकत की तह में जाना है ।।
& शुभ मंगल & सुमंगलम@।।

7 Love

b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

में तो रंग था ,
रंगीन तो तुम ने बनाया
मेरे संग आओ प्रीत 
कामदेव की पूजा करे,
रतिदेवी साथ हो
फिर प्रेम की थाली में
न पुष्प चाहिये
न कोई मंत्र 
न तंत्र की साधना 
तेरे मेरे अधरों पे
बस तेरे मेरे प्रीत के गीत. हम तुम

हम तुम #कविता

5 Love

b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

में विह्वल हो उठा
सुन के राग विराग
तेरे आंखो के सुवरन स्वप्न में
अनुराग प्रितम
मन के घरोन्दे
बन गये
तुम छोड़ न देना मझधार मे
फिर से दिल के सागर 
लहरो ज्वार भाटे आयेगे,
हम बह जाय कहाँ
क्या दिशा क्या साथी
ये अनुराग का भवर है।।
b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

बतों आकाश कु ज्वोन
कनके वी ते रैबार भेजू 
कु गेंणु का बीच अपणी बात वीते बातें दयो
अपना प्रेम का आखर जैका क्वे शब्द दे नि।।
b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

शरद की चन्द्रिका 
तेरी रजत रश्मि
जो सुधा के संग 
समागम करती है 
में और चकौर  
इस अमृत धारा में जलते है .
सुबह आस लिए 
प्रेम वियोगिनी 
सुधा के बुंदे बिषशूल जैसे चुभते  है . चांद औऱ में।।

चांद औऱ में।। #कविता

4 Love

b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

चन्द्रिका के चेहरे पे
ये अलकों की घटा पहरे देते हैं 
जब यू शरद के चाँद
जब सुधावर्षन करते हो 
इस प्रेम रस को अंजुली लेकर पीते है। चंद्रिका

चंद्रिका #कविता

5 Love

b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

जिन आशिक़ नाम(मूर्त) संग प्रेम करी
मोहब्बतें रसिक कहलाए।
अनाम(अमूर्त) संग जो प्रेम दिए जलाए 
मधुर पीर भाषिक बन जाय।।

6 Love

b83dc303a0114359efe362cd981aa7c9

Awnish bhatt

जीवनसर्ग
ये महासर्ग में जो उपसर्ग था
कथावस्तु के जीवनसर्ग में
उसे तुमनें ध्यान से पढ़ा नही ?
जीवन के बोध में तुम्हारी पहेली में 
अनबुझ कड़ी में अलसुलझा हूँ में
इसलिए तुम मेरे व्यथा ए कथा से अधूरे हो,
तुम्हारें समझ से परे था में
औऱ उलझते हुए कथानक के मध्य खड़ा था में
जो तपस औऱ तमस के मध्य की 
ज्योति पुंज जैसे जला हूँ मै
मुझे बस अब बोध कहाँ
दुनिया के अछूते व्यवहार से दूर रह कर
बस परमात्मा के साथ घुलनशील के लिए 
जल व शक़्कर की भांति 
तेज प्रवाह में अभी क्रियाशील हूं में ।।
ये आत्मोसर्ग के मिलन में 
ईशा को देखने को आतुर निसर्ग था।
सब के मध्य पीपल पात सा ओस हूँ में
जग व्यवहार का हिस्सा जो था में
सृष्टि का क्रम में दूर से दिखने वाला सूक्ष्म बिंदु हूँ में
सलिल व सूर्य के मध्य बना इंद्रधनुष
वह सतरंग सा उभरा हुआ हूँ ,
फिर अभी परमतत्व के खोज में गतिशील हूँ में
कही अभी तेज के अधीन प्रकाशशील किरण हूँ में।। जीवनसर्ग।।

जीवनसर्ग।।

6 Love

loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile