मेरे बारे मैं ना जानो इसी मैं तुम्हारी भलाई हैं। बहुत अंधेरो मैं मैंने जिंदगी बिताई हैं... और क्या जवाब दूँ तुम्हारे सवालों का। पत्थर हूँ मैं रोज हथोड़े की मार मैंने खाई हैं... कवि चंचल शर्मा✍️