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हंसान सीमित सोच में रहकर अपने शरीर को ही मैं मानकर

हंसान सीमित सोच में रहकर अपने शरीर को ही मैं मानकर जीता है पर जब उसे असली मैं का एहसास होता है तो फिर वह मान्यताओं की कैद से मुक्त एक नए एहसास में नए सिरे से जीवन जीने लगता है... -सरश्री तेजपारखी

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  #जीवनदर्शन