मँहगाई आई ई ई ई ई, छाई ई ई ई ई, महंगाई ई ई ई तीखे बाण चलाई, सबका सुख चैन उड़ाई, नमकीन पसीना बहाओ करो कमाई, जो चाहो निपटाना महँगाई , करो न आपसी लड़ाई, आती रहती है रुलाई, करो अब इसकी पिटाई, कितनी है हरजाई, देखो तो रुखाई, क्यों न तुमने इसकी ईंट से ईंट बजाई ? सदा ही करती खिंचाई, पढ़ाई से कराती जुदाई, अब तो कराओ इसकी विदाई ! यह है महँगाई , बढ़ रही सिर्फ़ इसी की लंबाई- चौड़ाई- ऊँचाई और गहराई, कोई बचा न बचा सकी इससे किसी की पंडिताई, नहीं यह जोड़ी राम मिलाई, पर देखो न कैसे इसने निभाई .. करने में इसकी भलाई , गिनाने में इसकी अच्छाई, कभी न करता कोई ढिलाई, खाने वाला मलाई आई रे आई रे आई महँगाई , छाई रे छाई रे छाई महँगाई , हूँ तो छत्तीसगढ़िया पर नहीं देखा भिलाई, अंबिकापुरिया बेटी हूँ मैं बहिन अउर भाई। ११७/३६५@२०२१ महंगाई का रोना, रोना ही पड़ता है चाहे व्यक्ति किसी भी वर्ग का क्यों न हो। सबको बढ़ना है पदोन्नति, वेतन - तो महंगाई क्यों पीछे रहे ? #महँगाई original yreeta-lakra-9mba