गीत वह चीख उठी तो देख लिया , फिर देख उसे मुँह फेर लिया । एक-एक कर देखा सबने , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।। वह चीख उठी तो देख लिया .... वह अबला थी बेचारी थी , भारत की बेटी प्यारी थी । दुर्भाग्य कहूँ क्या मैं उसको , जो किस्मत की वह मारे थी ।। जिस निर्धन की बेटी को , उस वहशी ने अब घेर लिया । वह चीख उठी तो देख लिया .... इन अय्याशो ने फैशन से , परिधान हमारा बदल दिया । संस्कार हमारी थी पूजी , दौलत के बल से लूट लिया ।। क्यों चुप आज समाज हमारा , क्यों इनको बनने शेर दिया। वह चीख उठी तो देख लिया ... चुप है सेवक चुप है जनता , क्या मैं इसका मतलब समझूँ । आज बचाओ बेटी को तुम ,क्या मैं बस उदबोधन समझूँ ।। दौलत के आगे शाशन को , उसने तो अपने पैर लिया ।। वह चीख उठी तो देख लिया .... न्यायपालिका के हम सुनते , थे कितने ही रखवाले है । लेकिन दौलत पर चलने से , अब आए उनमें छाले है ।। उजले भारत की हमने अब , धुधंली तस्वीर हेर लिया । वह चीख उठी तो देख लिया ..... वह चीख उठी तो देख लिया , फिर देख उसे मुँह फेर लिया । एक-एक कर देखा सबने , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।। ०६/०६/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत वह चीख उठी तो देख लिया , फिर देख उसे मुँह फेर लिया । एक-एक कर देखा सबने , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।। वह चीख उठी तो देख लिया .... वह अबला थी बेचारी थी , भारत की बेटी प्यारी थी । दुर्भाग्य कहूँ क्या मैं उसको , जो किस्मत की वह मारे थी ।। जिस निर्धन की बेटी को , उस वहशी ने अब घेर लिया ।