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यह क्या हो गया है? मनुष्य को यह क्या हो गया है? इत

यह क्या हो गया है?
मनुष्य को यह क्या हो गया है?
इतनी विपन्नता  इतनी अर्थहीनता
और इतनी घनी ऊब क़े बावजूद  वो
कैसे जी  रहा है?
जीवन है लेकिन जीने का भाव नहीं  है जीवन है लेकिन इक बोझ से ज्यादा
कुछ नहीं है
न सौंदर्यहै  न सम्रद्धि   है.
न आलोक है न आनंद है
और  शान्ति का तो  दूर  दूर तक कोई.
पता ही नहीं है

©Parasram Arora अर्थहीनता........
यह क्या हो गया है?
मनुष्य को यह क्या हो गया है?
इतनी विपन्नता  इतनी अर्थहीनता
और इतनी घनी ऊब क़े बावजूद  वो
कैसे जी  रहा है?
जीवन है लेकिन जीने का भाव नहीं  है जीवन है लेकिन इक बोझ से ज्यादा
कुछ नहीं है
न सौंदर्यहै  न सम्रद्धि   है.
न आलोक है न आनंद है
और  शान्ति का तो  दूर  दूर तक कोई.
पता ही नहीं है

©Parasram Arora अर्थहीनता........

अर्थहीनता........