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तुम्हारी याद के बादल बहुत घनेरे है हवाएं तेज़ थीं


तुम्हारी याद के बादल बहुत घनेरे है
हवाएं तेज़ थीं चारों तरफ़ अंधेरे है

वो दिन भी थे कि मेरा इंतिज़ार था तुमको
यक़ीन ही नहीं आता कभी तुम मेरे थे

तुम्हारे बाद वो महफ़िल उजड़ गई ऐ दोस्त
न अब वो शाम रही है न वो सवेरे है

ये शहर कितने बरस से उदास रहता है
यही वो शहर है जिसमे तेरे मेरे बसेरे थे

ये इक गली कि जो सूनी है एक मुद्दत से
इसी गली में शबो रोज़ अपने फेरे थे

कभी मिलें न मिलें उनको याद कर लेना
तू जिनको भूल चुकी है वो लोग तेरे है ।

©"ANUPAM"
  #तुम्हारी_यादें