चंद लम्हों की डगर है ज़िंदगी दूर चले जाना, शहर है ज़िंदगी। कभी धूप तो कभी छाॅंव मिलें, कहीं ढल जाना, बसर है ज़िंदगी। बेधड़क बारिशों का ये मौसम, बूॅंद- बूॅंद जाना, लहर है ज़िंदगी । राहों से गुजरके, थोड़ा संभलके, कहीं रुक जाना, ठहर है ज़िंदगी। तन्हा-सा नन्हा-सा सपन सलोना, कुछ कर जाना, उमर है ज़िंदगी। कोई साथ नहीं दे जब 'मनीष' बस मर जाना, सफ़र है ज़िंदगी। ©मनीष कुमार पाटीदार #cityview