मैं हूँ "संतोष" , एक लुप्त प्राय सा गुण, कभी मैं हर दिल में, पाया जाता था, जीवन में और, कुछ हो न हो , हर दिल में पाया जाता था । आज मेरा छोटा भाई, असंतोष हर दिल, का राजा है, किसी को , कम पैसों का , किसी को, अच्छे खाने का, किसी को कपङे को, लेकर असंतोष है, जो दिया है ईश्वर ने, उसका संतोष नहीं, बस जो नहीं मिला, उसका असंतोष है । अब सबके माथे, पर चिंता की, शिकन रहती है, सुकून की साँस, कहीं देखने को , नहीं मिलती है , संतोष जब तक, जीवन में नहीं, आऐगा, मनुष्य कभी, सुकून से नहीं , रह पाऐगा । ©purvarth #संतोष