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मैं हूँ "संतोष" , एक लुप्त प्राय सा गुण, कभी मैं

मैं हूँ "संतोष" ,
एक लुप्त प्राय
सा गुण,
कभी मैं 
हर दिल में,
पाया जाता था,
जीवन में और,
कुछ हो न हो ,
हर दिल में
पाया जाता था ।

आज मेरा
छोटा भाई,
असंतोष हर दिल,
का राजा है,
किसी को ,
कम पैसों का ,
किसी को,
अच्छे खाने का,
किसी को कपङे को,
लेकर असंतोष है,
जो दिया है ईश्वर ने,
उसका संतोष नहीं,
बस जो नहीं मिला,
उसका असंतोष है ।

अब सबके माथे,
पर चिंता की,
शिकन रहती है,
सुकून की साँस,
कहीं देखने को ,
नहीं मिलती है ,
संतोष जब तक,
जीवन में नहीं,
आऐगा,
मनुष्य कभी,
सुकून से नहीं ,
रह पाऐगा ।

©purvarth #संतोष
मैं हूँ "संतोष" ,
एक लुप्त प्राय
सा गुण,
कभी मैं 
हर दिल में,
पाया जाता था,
जीवन में और,
कुछ हो न हो ,
हर दिल में
पाया जाता था ।

आज मेरा
छोटा भाई,
असंतोष हर दिल,
का राजा है,
किसी को ,
कम पैसों का ,
किसी को,
अच्छे खाने का,
किसी को कपङे को,
लेकर असंतोष है,
जो दिया है ईश्वर ने,
उसका संतोष नहीं,
बस जो नहीं मिला,
उसका असंतोष है ।

अब सबके माथे,
पर चिंता की,
शिकन रहती है,
सुकून की साँस,
कहीं देखने को ,
नहीं मिलती है ,
संतोष जब तक,
जीवन में नहीं,
आऐगा,
मनुष्य कभी,
सुकून से नहीं ,
रह पाऐगा ।

©purvarth #संतोष