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कितना गहरा है जीवन सागर थाह नहीं मिलती जीवन की

कितना गहरा  है जीवन सागर 
थाह नहीं मिलती  जीवन की 
सपनो के जाल  बुनती  रहती 
चंचल  सी ये  मछली मेरे मन की 
क्यों  छूटती   नहीं पकड़?  
क्यों व्यर्थताये  आती नहीं नज़र   चाहो की 
यथार्थ की  हवाएं  बह  रही  सागर की  सतह  पर 
किन्तु  अतल  मे  धंसी  है  असंख्य चाहे 
नहीं ढूंढ  पा रही  राह   सतह  और  तट  की चंचल मछली........
कितना गहरा  है जीवन सागर 
थाह नहीं मिलती  जीवन की 
सपनो के जाल  बुनती  रहती 
चंचल  सी ये  मछली मेरे मन की 
क्यों  छूटती   नहीं पकड़?  
क्यों व्यर्थताये  आती नहीं नज़र   चाहो की 
यथार्थ की  हवाएं  बह  रही  सागर की  सतह  पर 
किन्तु  अतल  मे  धंसी  है  असंख्य चाहे 
नहीं ढूंढ  पा रही  राह   सतह  और  तट  की चंचल मछली........

चंचल मछली........