हो अगर स्वपन ही तुम तो इसे रहने दो अभी आधा देखा हूँ तुम्हे पूरा देखने दो वो गालो पे जो मौजूद है तिल उसे वही रहने दो खुले केशो को ना बांधो तुम इसे हवा के संग बहकने दो तुम्हारी सादगी का श्रंगार कहाँ देखा हूँ अभी तक इसे अभी रहने दो इत्र ना लगाओ आज तुम जिस्म को यूँ ही महकने दो बंजर है अभी तक दिले-जमीन कुछ बूंदे अभी बरसने दो समन्दर यूँ ही शर्मा जाएगा तुम लहरों को थोडा और उठने दो अभी कहाँ कोई संगीत है तुम थोड़ा अपने पायल को बजने दो थोड़ा चूड़ियों को खनकने दो दरवाजा बंद करना भूल गया हूँ आज मैं तुम आज अपने पाँव को थोड़ा भटकने दो आज नींद नहीं टूटेगी मेरी तुम खुद को स्वपन में ही रहने दो नहीं भूला हूँ अभी तुम्हे अभी यादों की किताब बंद रहने दो--अभिषेक राजहंस नहीं भुला हूँ अभी तुम्हे