उल्फ़त में हैं ये जिन्दगी, समझ भी नहीं आ रहा, और समझाने भी नहीं आ रहा, पता नहीं क्या होता जा रहा हैं। कोई कह नहीं पा रहा, कोई सुनना चाह रहा, यह उलझन है या सुलझ रहा, पता नही क्या होता जा रहा। दिख सभी को सब रहा, पर जताना कोई नहीं चाह रहा, उल्फ़त में है ये जिन्दगी, पता नही क्या होता जा रहा।। ©अर्पिता #उल्फत