इक दिन यूँही........... ©Krishna Awasthi इक दिन यूँही शान्त तालाब के पानी में, कंकर मारते हुए, मेरे मन में, ख़्याल की, लहर उठी, सोचा,,, कि काश होता ये भी कोई मेरे शान्त ठहरे हुए, जीवन को, प्रेम रूपी कंकर से विचलित करता मेरे विजन मे पड़े,