अपेक्षाएं सर्वत्र है सपनों का तंत्र है जीने का यंत्र है कहीं अपेक्षाएं विचित्र है धुंधला सा चित्र है अनदेखा मित्र है कहीं अपेक्षाएं इत्र है एक बंद पत्र है आशाओं का छत्र है कहीं अपेक्षाएं स्वतंत्र है पूर्णता तक सत्र है नित नव होता अस्त्र है क्या सबकी... अपेक्षाएं पवित्र है? अपेक्षाएं रहती है... स्वार्थ के साथ बदलती। ©Anand Dadhich #अपेक्षाएं #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #God