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इतनी अर्थ हीनता .....इतनी सघन ऊब ...के बावजूद ह

इतनी अर्थ हीनता   .....इतनी सघन ऊब ...के बावजूद 
हम कैसे  जी  लेते है ...जीवन. है  लेकिन.  जीने का  भाव नहीं है 
तभीतो  आत्महीनता से पीड़ित   लोग पद  खोजते है ..और आत्म दरिद्रता  से  ग्रसित  लोग  धन सम्पदा  के पीछे  दौड़ दौड़ कर. थकते है  गिरते है  लहूलुहान होते है निरर्थक  जीवन
इतनी अर्थ हीनता   .....इतनी सघन ऊब ...के बावजूद 
हम कैसे  जी  लेते है ...जीवन. है  लेकिन.  जीने का  भाव नहीं है 
तभीतो  आत्महीनता से पीड़ित   लोग पद  खोजते है ..और आत्म दरिद्रता  से  ग्रसित  लोग  धन सम्पदा  के पीछे  दौड़ दौड़ कर. थकते है  गिरते है  लहूलुहान होते है निरर्थक  जीवन