हर रोज लड़ रहा हु मै हालातो से मुझे चैन क्यों नही आती है अंधोरों से मुझे कोई शिकायत ही नहीं कमबख्त मुझे नींद क्यों नही आती है जमाने के बनाए पागल है हम कोई शालाखे कैद करने क्यों नही आती है जख्म का मुझे अब कोई खौफ ही नहीं कमबख्त ये दुनिया मुझे पत्थर क्यों नही मारती है हर रोज़ तरपते है एक नई दर्द के साथ कोई दावा दुवा काम क्यों नही आती है ज़िंदगी से मुझे कोई उम्मीद ही नहीं कमबख्त मुझे मौत क्यो नहीं आती है प्रीतम कुमार . . ©pritam kuamr sad #Hopeless