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घर से दूर मैं भी निकल पडा घर से दूर, घर के वास्ते

घर से दूर

मैं भी निकल पडा घर से दूर, घर के वास्ते। 
मजबूरियों को शौक नाम देते हुए
माँ पापा की फटकार से तो दूर,  
पर है कहाँ, उन सा राहगीर यहाँ। 
बेशक आजाद मैं यहाँ, 
पर है कहाँ, हमदर्द  माँ सा यहाँ ।
जिम्मेदारी कांधे रख, चला आया कुछ कर गुजरने की चाह लिए।
अनजान डगर में, लिए इरादे मजबूत , 
चला आया मैं भी घर से दूर घर के वास्ते।
दूर है मंजिल, रास्ते अधूरे अंधकारमय,
एक आस लिए पलकों पर अपने, चल दिया मैं भी घर से दूर  घर के वास्ते।।

©vikram
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