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ग़ज़ल :- झूठ की ही हुई अदालत है । रोज होती वहाँ सिया

ग़ज़ल :-
झूठ की ही हुई अदालत है ।
रोज होती वहाँ सियासत है ।।१

बिक रहा आदमी टका में जो ।
सब अमीरों कि यह इनायत है ।।२

दीन ईमान अब वही देखे ।
हाथ जिनके न आज दौलत है ।।३

लुट गये जब वफ़ा कि खातिर हम ।
होश आया कि सब रवायत है ।।४

बात वह तो बड़े अदब करता ।
देख परिवार की लियाकत है।।५

चाहती प्यार में करूँ शादी ।
जानती हूँ नही शराफत है ।।६

भूल जाओ उन्हें प्रखर तुम भी ।
कह गये वह नही मुहब्बत है ।।७
०६/१०/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

झूठ की ही हुई अदालत है ।

रोज होती वहाँ सियासत है ।।१


बिक रहा आदमी टका में जो ।
ग़ज़ल :-
झूठ की ही हुई अदालत है ।
रोज होती वहाँ सियासत है ।।१

बिक रहा आदमी टका में जो ।
सब अमीरों कि यह इनायत है ।।२

दीन ईमान अब वही देखे ।
हाथ जिनके न आज दौलत है ।।३

लुट गये जब वफ़ा कि खातिर हम ।
होश आया कि सब रवायत है ।।४

बात वह तो बड़े अदब करता ।
देख परिवार की लियाकत है।।५

चाहती प्यार में करूँ शादी ।
जानती हूँ नही शराफत है ।।६

भूल जाओ उन्हें प्रखर तुम भी ।
कह गये वह नही मुहब्बत है ।।७
०६/१०/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

झूठ की ही हुई अदालत है ।

रोज होती वहाँ सियासत है ।।१


बिक रहा आदमी टका में जो ।