कभी तो सुकून मिलेगी उसी समय जैसे आबाद हूं मैं गुलामी तो कबसे चादर ताने खड़ा है फिर भी कहता हूं आजाद हूं मैं रिश्तों में तनाव की गुलामी विवशता में सरताज की गुलामी भीड़ में आवाज की गुलामी कल के भविष्य में आज की गुलामी नवयौवनता पर बेरोजगार की गुलामी फिर भी बदलती सभी बात है गुलामी के जंजीरों में जकड़ क्यूं कहते है हम आजाद है गुलामी की बात नहीं हम प्रेम का मंत्र अपनाते है ये झंडा ऊंचा रहे हमारा कुछ ऐसा स्वतंत्र मनाते है ©@कुमार दीपेन्द्र #hapoy #लव #share #hand #Shaam #jhanda #Independence