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हे जगजननी, हे जगतारिणी, पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं

हे जगजननी, हे जगतारिणी, पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं। आ जाओ मां मेरी कुटी में, यही विनय मैं करता हूं। भला ,बुरा जैसा भी हूं मैं, आखिर हूं तो तुम्हारा ही।आंचल में रख लो मुझको भी, हूं तो अंश तुम्हारा ही। पत्र नहीं अर्जी है मेरी, चरणों में मैं रखता हूं। हे....। तुम्हें छोड़ अब तू ही बता ,कहां और अब जाऊं मैं। तुमसे बढ़कर कौन है अपना, जिसे जाके अपनाऊं मैं। तेरी मर्जी अब तू जाने, सब तेरे हवाले ,करता हूं। हे.. । जिन राहों से तुम गुजरोगी, वहीं मुझे तुम पाओगी।   मां बेटे का रिश्ता है ये, कैसे तुम ठुकराओगी।            भूल न जाना अम्बे मेरी, चरणों में शीश नवाता हूं। हे ...। आप ही का .....नागेंद्र।

©नागेंद्र किशोर सिंह # प्रार्थना पत्र
हे जगजननी, हे जगतारिणी, पत्र तुम्हें मैं लिखता हूं। आ जाओ मां मेरी कुटी में, यही विनय मैं करता हूं। भला ,बुरा जैसा भी हूं मैं, आखिर हूं तो तुम्हारा ही।आंचल में रख लो मुझको भी, हूं तो अंश तुम्हारा ही। पत्र नहीं अर्जी है मेरी, चरणों में मैं रखता हूं। हे....। तुम्हें छोड़ अब तू ही बता ,कहां और अब जाऊं मैं। तुमसे बढ़कर कौन है अपना, जिसे जाके अपनाऊं मैं। तेरी मर्जी अब तू जाने, सब तेरे हवाले ,करता हूं। हे.. । जिन राहों से तुम गुजरोगी, वहीं मुझे तुम पाओगी।   मां बेटे का रिश्ता है ये, कैसे तुम ठुकराओगी।            भूल न जाना अम्बे मेरी, चरणों में शीश नवाता हूं। हे ...। आप ही का .....नागेंद्र।

©नागेंद्र किशोर सिंह # प्रार्थना पत्र